Saturday 19 April 2014

An attempted tribute to graduating seniors

वो जाते जाते वादियों को चूमता जा रहा था |
वो सारी फिजूल सांसें जो उसने कल तक खर्च किये थे ;
आज रात उसका हिसाब हो जायेगा ||
कुछ बुनियादी -बेबुनियादी रिश्ते 
जो लोगों ने उसके दीवार पर टांग दिए थे 
अब उनका क्या होगा ? वो शायद ना रहे |
एक नया दौड़ आएगा , नए पेंट चढ़ जाएंगे ||

शेल्फ के एक कोने में 
जो सारे कैश मेमो पड़े  थे ;
सीसीडी, park , flavours , शिवानी 
हर पल एक नयी कहानी |
अब इनका क्या होगा ? ये शायद अब ना रहे ||

खैर 
packed  बैग के साथ 
यादों  के भी तो कुछ कच्चे चिठ्ठे जाएंगे ,
कुछ अल्फ़ाज़ जो कभी भुलाये ,भूले ना जा सके; 
कुछ "रिग्रेट्स" जो मिटाये मिट ना सके ;
कुछ मुहब्बत , जो कभी मुहब्बत बन ना सके ;
ये सारे साथ जाएंगे |
और जब कभी यही बसंत लौटेगा; 
जवाँ पे पुराना जायका लौटेगा ;
यादों का एक हूक दिल के दरवाजे को दस्तक देगा 
शायद...शायद...शायद...
 किसी मोड़  पे फिर मिलेंगे ...........................................................


-Anupam Kumar
Third year undergraduate

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