आत्महत्या
एक नाकाम कोशिश
तकलीफ़े पीछे छोड़ने की ।
एक कायर कहानी
दुनिया से मुँह मोड़ने की ॥
एक खुदगर्ज़ी
अपनों को बीच राह छोड़ने की ॥
अब काश कोई इन अभागों को समझा पाये
यूँ दर्द से राहत नहीं मिला करती ,
राहत नाम एक एहसास का हैं
जो महसूस करने को आदमी, ज़िंदा जरुरी हैं ॥
कभी देखा हैं किसी मुर्दे को चैन की साँस लेते हुए ?
मौत को यूँ चूम कर
पाने जाते हो नयी सुबह
क्या सोच के ,
अगली जंग तुम्हें आसान मिल जाएगी ?
ये झूला
कभी दर्द नहीं छीन पाता ।
अगर कुछ छीन पाता हैं तो बस ,
बेबस माँ के चेहरे पे हँसी ।
दे पाता हैं कुछ तो बस
लाचार बाप की आँखों में नमी ॥
कन्धा से कन्धा ढूँढता हैं भाई
बहन याद करती हैं राखी वाली कलाई ॥
.
.
अंत में,
फ़िर भी
.
अंत में,
फ़िर भी
अगर फैसला अपना
सही लगा हैं तुमको भाई
तो शायद सच में बदकिस्मत थी, वो माई
जिसने जिण कर तुम्हें, अपनी कोख़ लजाई ॥
-Manish Kumar Khedawat
Senior Undergraduate
Dept. of Electronics and Electrical communication Engineering
-Manish Kumar Khedawat
Senior Undergraduate
Dept. of Electronics and Electrical communication Engineering
No comments:
Post a Comment