Friday, 11 April 2014

विदा

मन अक्सर रो उठता है

सोच करके उन पलों को,

जो पल-पल पास आए जाते हैं

और  दिल में हूक  उठा जाते हैं /

जब जाते होगे दूर कहीं तुम मुझसे

और स्तब्ध खड़ा-सा मैं होऊँगा

आँसू ले अपनी आँखों में /

मन जो चाहे हो न पाए /


लिपट उठता हूँ मैं तुमसे

कि विदा की बेला शायद न आएगी /

घड़ियाँ बढ़ना छोड़ विगत को दुहरायेंगी /

भ्रम  टूटता है,घड़ियाँ बढती हैं और कदम भी बढ़ते हैं /

आँखों में आँसू झिलमिल  फिर से सजने लगते हैं /


वादे होते हैं फिर  मिलने के,याद सदा रखने के

और भूले-से भी भूल नहीं जाने के /

वादे तो कर चुके पर क्या कभी ये पूरे होंगे ?

समय की धारा में बहते क्या कभी संग  किनारे होंगे ?

बिन बोले क्या अब जानोगे ?

बातें जो भी कहना चाहूँ /

पास क्या तुम आ सकोगे?

साथ तुम्हारा जब भी चाहूँ /

- Kumar Keshvendra

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